”भिया केजरीवाल तो ना ले रिया ना दे रिया है लेकिन सही बम्बू कर रिया है”
“हमने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मज़बूत लोकपाल दिया, आरटीआई का क़ानून दिया, हमने आपको भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सबसे बड़े हथियार दिए” शायद लोकसभा चुनाव में राहुल बाबा के भाषण कि लाइनें कुछ ऐसी ही होंगी।
कहने को लोकपाल बिल पास हुआ है लेकिन बंदूक अन्ना के कंधे पर, निशाने पर अरविंद और कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़। ठीक से समझने के लिए कुछ तस्वीरों को ज़ेहन में लाएं: चार राज्यों में कांग्रेस कि डूबती नैया और झाड़ू लेकर जश्न मनाते आम आदमी पार्टी के लोग, दूसरी तस्वीर में पिछले 3 सालों से हर बड़े मुद्दे पर चुप रहने वाले राहुल गांधी एकाएक कांग्रेस मुख्यालय में लोकपाल बिल पर प्रेस कांफ्रेंस करते हैं, तीसरी तस्वीर अन्ना हज़ारे के ताज़ा अनशन की, चौथी तस्वीर राज्यसभा में लोकपाल बिल पास होने के बाद राहुल बाबा कि पीठ थपथपाते कांग्रेसियों की, क्या इनका आपस में कोई रिश्ता है? जी हां है कांग्रेस ने सियासत कि बिसात कुछ यूं बिछाई कि भ्रटाचार के खिलाफ कल तक साथ में लड़ रहे गुरु और चेले को आपस में ही लड़ा दिया। कांग्रेस ने अरविंद की दिल्ली चुनाव में कामयाबी से अन्ना हज़ारे के मन में अप्रांसगिक होने का खौफ कुछ यूं पैदा किया कि अन्ना कांग्रेस के जाल में फंस ही गए और लगे हाथ उन्होंने राहुल बाबा और कांग्रेस को ईमानदारी का सर्टिफिकेट दे डाला। बीजेपी के टिकट पर दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रही किरण बेदी और मोदी के साथ मंच साझा कर चुके जनरल वी के सिंह भी लोकपाल की कामयाबी का श्रेय लेने की होड़ में कांग्रेस के मोहरे बन गए. दरअसल चार राज्यों में मिली हार में सबसे कांग्रेस को सबसे ज्यादा तकलीफ दिल्ली में आम आदमी पार्टी के हाथों हारने से हुई है. खासकर अरविंद केजरीवाल के हाथों दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की इतनी बड़ी हार कांग्रेस जैसी सामंतवादी सोच वाली पार्टी, जो अपने को सत्ता का सबसे स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानती है, पचा नहीं पा रही है. याद कीजिए दिल्ली में राहुल की सभा में रुकने के लिए जनता के हाथ जोड़ती शीला दीक्षित और बीच से उठ कर जाती भीड़ वाले दृश्य को, कांग्रेस के लिए ये बड़ा झटका था. लिहाजा कांग्रेस ने ‘आप’ को निपटाने के लिए अन्ना को सामने खड़ा कर एक तीर से ही कई शिकार करने की चाल चली. अब इसके बाद राहुल गांधी भले ही अपनी कॉलर ऊंची करें लेकिन इन सब में सांप-छछूंदर की स्थिति में बीजेपी ही नज़र आई… बिल का विरोध करना मुमकिन नहीं और सपोर्ट करने पर लोकपाल का श्रेय राहुल बाबा को मिलने का डर, लेकिन शायद बीजेपी को भी कांग्रेस से ज्यादा बड़ा खतरा अरविन्द लगते हैं तभी तो बीजेपी ने इस बिल का सपोर्ट किया जिससे आम आदमी पार्टी के हाथ से ये बड़ा मुद्दा जाता रहे. लेकिन दूसरी तरफ राजनेताओं से भिड़ते-भिड़ते अरविन्द ने फिर एक ऐतिहासिक कदम उठा डाला, उन्होंने जनता से सरकार बनाने या ना बनाने का फैसला करने के लिए कह दिया क्योंकि अरविन्द जानते हैं कि सरकार बन भी गई तो लम्बी चलना मुश्किल है यानि सरकार बने तो इसे जनता का फैसला बताया जाए और ना बने तो इस बहाने दिल्ली की 70 सीटों पर उनके उम्मीदवार दोबारा चुनाव कि तैयारी शुरू कर दें जबकि बीजेपी और कांग्रेस चुनाव की खुमारी ही नहीं उतार पाए हैं. अब लोकपाल बिल के बहाने ही सही कांग्रेस कुछ देर अपने ज़ख्म भले ही सहला लें लेकिन अरविंद केजरीवाल नरेंद्र मोदी की लीग में पहुंच गए हैं यानि जैसे मोदी के बारे में कहा जाता है कि ” Modi is Creation of his enemies” यानि मोदी यहां तक पहुंचाने में उनके विरोधियों का बड़ा हाथ है उसी तरह अब अरविंद केजरीवाल का जितना विरोध होगा, उतना वो और मज़बूत हो उभरेंगे। अन्ना और कांग्रेस की सेटिंग का फायदा भी केजरीवाल को ही मिलेगा। क्योंकि अब लोग वाकई में इस ‘खेल’ को समझने लगे है, इंदौर में ऑटो वाले ने मुझसे कहा कि ”भिया केजरीवाल तो ना ले रिया ना दे रिया है लेकिन सही बम्बू कर रिया है”